मन उद्विग्न है, उदास है,
क्या हो रहा आसपास है।
लहराता गर्व जहां झूम कर, लहूलुहान प्राचीर आज निराश है।।
क्या चाह हमारी इतनी बुलंद,
जहां मान की न बात है।
मेरे देश के आन, बान की,
बस यही औकात है।।
क्यों भूल गए हैं हम सभी, पहचान मेरी यह देश है।
जिस मिट्टी में हम पले बढ़े,
वो मेरा ही गणवेष है।।
आ,फिर इसको हम चूम लें,
सीने से लगाकर झूम लें।
जो गलत हुआ उसे छोड़ कर, आगे की राहें सूंघ लें।।
यह देश मेरा है घर अपना,
सभी अपनी आदत सुधार लें। सीने पर फिर न चोट लगे,
आओ मिलकर इसे संवार लें।।