वर्ष का अवसान समीप था,
मन था उलझन में पड़ा –
क्या कहूं –
विदा लेते हुए इस वर्ष के बारे में,
था यह रहा सोच ?
दे गया वर्ष कितने अनुभव,
सिखा गया जीने की कला,
याद दिला गया फिर फिर,
गूढ़ मंत्र प्रसन्न और स्वस्थ रहने का –
“प्रकृति से मित्रता की गहराई जितनी अधिक,
जीवन उतना ही अधिक स्वस्थ एवं सुखी”।
लेकिन वे हैं, जो –
सदा की तरह – हैं निराश व व्यथित,
थकते नहीं कहते –
दे गया इतने कष्ट !
ले गया दूर – भौतिक आकांक्षाओं की प्राप्ति से,
छोड़ गया मन में टीस,
भूल जाते हैं वे –
आभार प्रकट करना प्रभु का,
जीवित हैं आनंद लेने,
एक नूतन वर्ष का।
सोच रहा है आगे मन, अब –
प्रफुल्लित और उत्साहित होता,
यह तो ‘समय’ है -आगे ही आगे बढ़ता,
रुकना इसे आता नहीं,
निरंतर गतिमान – अति बलवान,
एक ही है – गति इसकी,
प्रेरित करता – साथ चलने को,
हँसते गाते धूम मचाते,
परिश्रम और वीरता से,
बाधाओं को चीरते,
लगन से लक्ष्य की ओर,
सांत्वना और साहस बंधाता कि –
सफलता तो स्वयं ही आकर मिलेगी।
मन है जो अब – कुछ अधिक ही हर्षित,
भर रहा है उड़ान,
सोच रहा है – कितना कुछ है – करने को अभी,
प्रकृति कर रही है आवाहन –
करो मित्रता और बढ़ जाओ आगे,
दिखा रही है डगर सामने – सफलता की,
आ गया, आ गया, नव वर्ष आ गया,
हंसो – हंसाओं,
आया नव वर्ष।