ऐ बसंत तुम, जहां जाते हो
खिल खिल खुशनुमा हो जाते हो,
तरुणाई के हिय में बसे,
प्रीत रंग में,, सुर्ख गुलाब हो जाते हो
धरा पे फैली, पीत सरसों में
पीत चूनर में ,शरमा जाते हो
पतझर से झरे,पत्तों में,
उमर का अहसास करा जाते हो,
आस पे आस रहती है, बसंत तुम्हारी,
इक हूक जगा, नयना तरसा जाते हो,